वो सुखनवर है कि जिसके सामने तारे झुकें, वो रसूल-ए-अरबी ﷺ है, जिससे जमाने झुकें।

सरवर कहूँ कि मालिक-ओ-मौला कहूँ तुझे, बाग़-ए-ख़लील का गुल-ए-ज़ेह्रा कहूँ तुझे।

कौन देता है देने को मुँह चाहिए, देने वाला है सच्चा हमारा नबी ﷺ।

तुझसे दरिया-ए-करम बहता है ऐ सरवर, तेरे सदके से है गुलज़ार ये सारा घर।